इस
आर्टिकल में
शरीर को
बलपुष्टि प्रदान
करने वाले
तथा यौन
स्वास्थ्य बनाने
वाले एक
बहुचर्चित किन्तु
दुर्लभ द्रव्य
"शिलाजीत" से
सम्बंधित विवरण
प्रस्तुत किया
जा रहा
है. शिलाजीत
को सामान्यतया
यौन समस्याओं
में उपयोगी
औषधि के
रूप में
ही जाना
और समझा
जाता है
जबकि यह
एक ऐसा
रसायन है
जिसका सेवन
रोगी ही
नहीं बल्कि
स्वस्थ व्यक्ति
भी कर
सकता है
और अपने
स्वास्थ्य को
उत्तम बनाये
रख सकता
है.
आयुर्वेद
के सभी
ग्रंथों में
"शिलाजीत" का
बहुत गुणगान
किया गया
है. आयुर्वेद
के अनेक
महत्वपूर्ण योगों
में "शिलाजीत"
का प्रयोग
किया जाता
है क्यूंकि
यह बलपुष्टिकारक,
ओजवर्धक, दौर्बल्य
नाशक , धातुपौष्टिक
होने के
साथ साथ
कई प्रकार
के जीर्ण
रोगों को
दूर करने
वाले द्रव्य
है. आयुर्वेद
के अनुसार
शिलाजीत सभी
प्रकार की
व्याधियों को
नष्ट करने
के लिए
प्रसिद्द है.
शिलाजीत की
सबसे बड़ी
विशेषता ये
है की
ये सिर्फ
रोगग्रस्त का
रोग दूर
करने के
लिए ही
उपयोगी नहीं
बल्कि स्वस्थ
व्यक्ति के
लिए भी
उपयोगी है
यानि स्वस्थ
व्यक्ति (स्त्री
या पुरुष
) भी अपने
स्वास्थ की
रक्षा करने
और शारीरिक
पुष्टि को
बनाये रखने
के लिए
इसका सेवन
कर सकता
है. इस
प्रकार से
ये भी
सिद्ध होता
है की
शिलाजीत को
यौन दौर्बल्य
से पीड़ित
विवाहित व्यक्ति
ही नहीं
अविवाहित युवक
भी सेवन
कर सकता
है. आम
व्यक्ति की
धारणा में
शिलाजीत एक
यौन टॉनिक
की तरह
स्थापित है
जबकि यह
अन्य प्रकार
के कई
रोगों को
दूर करने
के साथ
साथ शरीर
बल, वर्ण
और ओज
प्रदान करने
वाले एक
जनरल टॉनिक
भी है.
शिलाजीत
शुद्ध और
असली हो, साथ
ही इसका
सेवन उचित
मात्रा में
और विधि-विधान
के अनुसार
हो किया
जाये तभी
इसके अपेक्षित
लाभ प्राप्त
होते हैं.
आयुर्वेद में
वर्णित इस
द्रव्य की
प्रशंसा पढ़
कर किसी
भी पाठक
क्व मन
में शिलाजीत
के प्रति
उत्सुकता और
इसे सेवन
कर लाभ
उठाने की
लालसा पैदा
हो सकती
है. इसलिए
शिलाजीत का
उपयोग करने
सम्बन्धी यह
स्पष्ट चेतावनी
दे देना
हम जरुरी
समझते हैं
की जब
तक यह
सिद्ध न
हो जाये
की जो
शिलाजीत आप
खरीद रहे
हैं वह
असली और
शुद्ध है
और उसमे
किसी भी
प्रकार की
मिलावट नहीं
है तब
तक उसका
सेवन न
करें वर्ना
मनोवांछित लाभ
न मिलने
पर इस
उपयोगी और
अभूतपूर्व गुणों
से युक्त
द्रव्य को
आप बेकार
चीज समझने
लगेंगे. वैसे
शुद्ध शिलाजीत
की जांच
पड़ताल सम्बन्धी
कुछ सामान्य
उपाय यहाँ
प्रस्तुत कर
रहे हैं
* पानी में डालते ही वह तार तार होकर जल में बैठ जाए तो वह शुद्ध शिलाजीत है.
* सूख जाने पर उसमे गौमूत्र जैसी गंध आये, रंग कला और पतले गोंड के सामान हो, हल्का व् चिकना हो तो ऐसे शिलाजीत को शुद्ध और उत्तम समझें.
* पानी में डालते ही वह तार तार होकर जल में बैठ जाए तो वह शुद्ध शिलाजीत है.
* सूख जाने पर उसमे गौमूत्र जैसी गंध आये, रंग कला और पतले गोंड के सामान हो, हल्का व् चिकना हो तो ऐसे शिलाजीत को शुद्ध और उत्तम समझें.
शिलाजीत का
परिचय, उसके
प्रकार एवं
गुण , उसकी
शोधनविधि व्
उपयोगिता सम्बन्धी
विस्तृत चर्चा
शुरू करते
हैं.
शिलाजीत दरअसल पत्थर की शिलाओं से पैदा होता है इसीलिए इसको शिलाजीत कहा जाता है. तमाम आयुर्वेदाचार्य और आयुर्वेदिक ग्रन्थ इसे पर्वत की शिलाओं से उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ आधुनिक विद्वान इसे पार्थिव द्रव्य न मानकर पर्वतीय वनस्पतियों का निर्यास (Exudation ) मानते हैं यानि एक वेजिटेबल प्रोडक्ट मानते हैं. उनकी राय में चूँकि यह शिलाओं से बहता हुआ आता है इसलिए इसे शिलाजतु कहा गया है.आयुर्वेद की सुश्रुत संहिता के अनुसार जेष्ठ और आषाढ़ मास में सूर्य की तीव्र किरणों द्वारा तपे हुए पर्वत, लाख के समान रस बहते हैं यही रस शिलाजतु कहलाता है.
चरक संहिता
में भी
कहा गया
है - सुवर्ण
आदि पर्वतीय
धातुएं सूर्य
के ताप
से संतप्त
होकर लाख
के समान
पिघली हुई
, कोमल चिकनी
मिटटी के
समान स्वच्छ
मल का
स्त्राव (बहाव)
करती है.
इसे ही
शिलाजीत कहते
हैं.
शिलाजीत
के चार
भेद बताये
हैं - सुवर्ण,
चांदी, ताम्बा
और लोहा,
इन चार
धातुओं से
उत्पन्न शिलाजीत
क्रम से
श्रेष्ठ होता
है. आयुर्वेद
की चरक
संहिता में
कहा गया
है - सामान्यतः
सभी प्रकार
के शिलाजीत
गौमूत्र जैसी
गंध वाले
होते हैं
और वे
सभी तरह
के विकारों
को दूर
करने के
लिए उपयुक्त
होते हैं.
रसायन की
दृष्टि से
प्रयोग करने
के लिए
लौह शिलाजीत
सर्वोत्तम है.
शिलाजीत
हिमालय पर्वत
श्रृंखला के
पर्वतीय पत्थर
में होता
है और
भारत, पाकिस्तान,
चीन के
इन क्षेत्रों
के पर्वतीय
पत्थरों में
कुछ प्रतिशत
में रहता
है. इसकी
पर्याप्त मात्रा
प्राप्त करने
के लिए
इसे इन
पत्थरों से
विशेष विधि
द्वारा शोधन
कर निकला
जाता है.
शिलाजीत
शोधन विधि - ५
किलो शिलाजीत
के पथ्थरों
को छोटे
छोटे टुकड़ों
में तोड़
कर एक
भगोने में
३०-४०
लीटर गर्म
पानी में
गला दें.
२-३
दिन तक
गलाने के
बाद उसमे
गौमूत्र या
त्रिफला क्वाथ
(हरड़, बहेड़ा,
आंवला ) अच्छे
से मिला
कर २४
घंटे भीगने
दें. फिर
इसे उबाल
कर ऊपर-ऊपर
का शिलाजीत
युक्त साफ़
जल निथार
लें. भगोने
में जो
शेष रह
जाये उसमे
भी गौमूत्र
एवं गर्म
पानी मिलाकर
दूसरे दिन
उसका पानी
भी निथार
लें. अब
इस निथरे
हुए जल
को भट्टी
पर चढ़ा
कर अच्छी
तरह उबालें.
जब पूरा
पानी उड़
जायेगा तब
काले डामर
के समान
राबड़ी जैसा
शिलाजीत निकलेगा
जिसे किसी
साफ़ पात्र
में इकठ्ठा
कर लें
यही शुद्ध
शिलाजीत है.
इसे अग्नितापी
शिलाजीत कहते
हैं.
सूर्यतापी
शिलाजीत प्राप्त
करने के
लिए उपरोक्त
विधि से
प्राप्त निथारे
हुए जल
को एक
कलाई किये
हुए पात्र
में छान
कर भर
लें और
उस पात्र
को सूर्य
की धूप
में रखने
से रोज
शाम को
या दूसरे
दिन सुबह
ऊपर के
भाग में
दूध की
मलाई के
समान शिलाजीत
की मलाई
आ जाती
है उस
मलाई को
खुरच कर
या कलछी
से अलग
बर्तन में
निकाल कर
सुखा लेने
पर शुद्ध
शिलाजीत प्राप्त
होती है.
शिलाजीत के
पात्र, जिससे
रोज मलाई
उतरी जाती
है उसमे
मलाई आ
रही हो
और तेज
धूप के
कारण यदि
जल सूख
जाये या
कम हो
जाए तो
आवश्यकता के
अनुसार त्रिफला
क्वाथ मिला
लें. जब
मलाई आना
बंद हो
जाए तो
शेष कचरे
को फेंक
दें.
शिलाजीत के गुण
(characteristics and qualities of shilajit )
शिलाजीत
में स्नेह
और लवण
गुण होने
से वातघ्न
, रस गुण
होने से
पित्तघ्न , तीक्ष्ण
गुण होने
से श्लेष
मघन और
मेदोघ्न , चरपरी
और तीक्ष्ण
होने से
दीपन, कड़वा
रस होने
से रक्त
विकार नाशक,
तथा चरपरा,
तीक्ष्ण और
उष्ण गुण
होने से
कृमिघ्न होती
है. शिलाजीत
स्निग्ध होने
से पौष्टिक,
बल्य, आयुवर्धक,
वृष्य, विषनाशक,
मंगल (रसायन)
, और अमृतरूप
(सत्ववर्धक ) गुणों
की प्राप्ति
कराने वाला
होता है.
शुद्ध शिलाजीत
के सेवन
से धातुक्षीणता
और मूत्ररोग
दूर होते
हैं तथा
स्मरणशक्ति बढ़ती
है.
महर्षि
आत्रेय के
अनुसार शिलाजीत
अनमल (खट्टी
नहीं ) , कषाय
रस प्रधान,
विपाक में
कटु, न
अधिक उष्ण,
न अधिक
शीत अपितु
समशीतोष्ण है.
इसकी उत्पत्ति
सोना से,
चांदी से,
ताम्बा से
और कृष्ण
लोह से
होती है.
विधिपूर्वक सेवन
करने से
यह वाजीकरण
तथा रोगनाशक
होता है.
इस पृथ्वी
पर ऐसा
कोई रोग
नहीं है
जिसे उचित
समय पर,
उचित योगों
के साथ
विधिपूर्वक शिलाजीत
का प्रयोग
करके बलपूर्वक
नष्ट न
किया जा
सके. स्वस्थ
मनुष्य भी
यदि शिलाजीत
का विधिपूर्वक
प्रयोग करता
है तो
उसे उत्तम
बल प्राप्त
होता है.
भगवान्
धन्वन्तरि जी
कहते हैं
की सब
प्रकार का
शिलाजीत कड़वा,
चरपरा, कुछ
कषाय युक्त,
सर (वात
और मल
प्रवर्तक या
सर्वत्र पहुँच
जाने वाला
) , विपाक में
चरपरा, उष्णवीर्य,
कफ और
मेद का
शोषण करने
और मल
का छेदन
करने वाला
है. शिलाजीत
के सेवन
से प्रमेह,
कुष्ठ, अपस्मार,
उन्माद, क्षय,
शोथ, अर्श,
विषम ज्वर
आदि रोग
थोड़े ही
समय में
दूर हो
जाते हैं.
यह बहुत
काल से
मूत्र में
आने वाली
शर्करा और
पथरी का
भेदन करके
उसे बाहर
निकाल देता
है|
शिलाजीत की मात्रा और सेवन विधि
शिलाजीत
की २-२
गोली या
शुद्ध शिलाजीत
४-४
रत्ती (५००
मिग्रा) सुबह
शाम दूध
के साथ
लेना चाहिए.
आयुर्वेद में
जितना महत्त्व
पथ्य और
अपथ्य के
पालन को
दिया गया
है उतना
ही 'अनुपान
के सेवन'
को भी
दिया गया
है. शिलाजीत
का विभिन्न
रोगों में
अलग-अलग
अनुपान के
साथ प्रयोग
किया जाता
है और
रोगी को
इसके सम्पूर्ण
लाभ प्राप्त
होते है.
कुछ महत्वपूर्ण
रोगों में,
शिलाजीत का
सेवन करने
में उपयोगी,
अनुपानों की
जानकारी प्रस्तुत
की जा
रही है:-
* ज्वर
का शमन
करने के
लिए :
- नागर मोठा
और पित्त
पापड़ा के
क्वाथ के
साथ.
*मोटापा दूर करने के लिए : एक गिलास पानी में २ चम्मच शहद घोल कर इसके साथ आधा ग्राम शुद्ध शिलाजीत या शिलाजीत की २ गोली लेना चाहिए. अधिक लाभ के लिए इसके साथ मेदोहर गुग्गुल की २-२ गोली भी ले सकते हैं.
* स्मरणशक्ति बढ़ने के लिए : गाय के दूध के साथ.
* शोथ (सूजन) व् असाध्य रोगों के लिए : गौमूत्र के साथ.
* पथरी के लिए : गोखरू काढ़े के साथ.
*धातुक्षीणता या शारीरिक कमजोरी के लिए : केशर और मिश्री मिले दूध के साथ.
* मूत्र रोग : छोटी इलायची और पीपल का समभाग चूर्ण के साथ.
* मधुमेह : सालसारदीगण के क्वाथ के साथ.
अपथ्य - शिलाजीत एक लाभकारी पोषक द्रव्य है पर कुछ स्थितियों में इसका सेवन वर्जित भी है. शिलाजीत का सेवन पित्तप्रधान प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए. पित्त प्रकोप हो, आँखों में लाली रहती हो, जलन होती हो, और शरीर में गर्मी बढ़ी हुई हो ऐसी स्थिति में भी शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए. इसी तरह शिलाजीत का सेवन करते हुए लाल मिर्च, जलन करने वाले उष्ण प्रकृति के पदार्थ, भारी गरिष्ठ पदार्थ, तेज़ मिर्च मसाले, शराब, अंडे , मांस , मछली , तेल गुड़ , खटाई , का त्याग रखना चाहिए.
*मोटापा दूर करने के लिए : एक गिलास पानी में २ चम्मच शहद घोल कर इसके साथ आधा ग्राम शुद्ध शिलाजीत या शिलाजीत की २ गोली लेना चाहिए. अधिक लाभ के लिए इसके साथ मेदोहर गुग्गुल की २-२ गोली भी ले सकते हैं.
* स्मरणशक्ति बढ़ने के लिए : गाय के दूध के साथ.
* शोथ (सूजन) व् असाध्य रोगों के लिए : गौमूत्र के साथ.
* पथरी के लिए : गोखरू काढ़े के साथ.
*धातुक्षीणता या शारीरिक कमजोरी के लिए : केशर और मिश्री मिले दूध के साथ.
* मूत्र रोग : छोटी इलायची और पीपल का समभाग चूर्ण के साथ.
* मधुमेह : सालसारदीगण के क्वाथ के साथ.
अपथ्य - शिलाजीत एक लाभकारी पोषक द्रव्य है पर कुछ स्थितियों में इसका सेवन वर्जित भी है. शिलाजीत का सेवन पित्तप्रधान प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए. पित्त प्रकोप हो, आँखों में लाली रहती हो, जलन होती हो, और शरीर में गर्मी बढ़ी हुई हो ऐसी स्थिति में भी शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए. इसी तरह शिलाजीत का सेवन करते हुए लाल मिर्च, जलन करने वाले उष्ण प्रकृति के पदार्थ, भारी गरिष्ठ पदार्थ, तेज़ मिर्च मसाले, शराब, अंडे , मांस , मछली , तेल गुड़ , खटाई , का त्याग रखना चाहिए.
Comments
Post a Comment